श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 74: राजसूय यज्ञ में शिशुपाल का उद्धार  »  श्लोक 27-28
 
 
श्लोक  10.74.27-28 
 
 
तत्पादाववनिज्याप: शिरसा लोकपावनी: ।
सभार्य: सानुजामात्य: सकुटुम्बो वहन्मुदा ॥ २७ ॥
वासोभि: पीतकौषेयैर्भूषणैश्च महाधनै: ।
अर्हयित्वाश्रुपूर्णाक्षो नाशकत् समवेक्षितुम् ॥ २८ ॥
 
अनुवाद
 
  भगवान कृष्ण के चरण पखारकर राजा युधिष्ठिर ने हर्षित होकर उस जल को अपने सिर पर व तत्पश्चात अपनी पत्नी, भाइयों, अन्य कुटुंबियों तथा मंत्रियों के सिर पर छिड़का। वह जल सारे संसार को पवित्र करने वाला है। जब वे पीले रेशमी वस्त्रों एवं मूल्यवान रत्नों से जड़े हुए आभूषणों की भेंट देकर प्रभु का सत्कार कर रहे थे, तब राजा के अश्रुओं से भरी आँखें उन्हें प्रभु को सीधे देखने से रोक रही थीं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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