श्रुत्वा द्विजेरितं राजा ज्ञात्वा हार्दं सभासदाम् ।
समर्हयद्धृषीकेशं प्रीत: प्रणयविह्वल: ॥ २६ ॥
अनुवाद
राजा ब्राह्मणों की इस घोषणा से बेहद खुश हुए क्योंकि वे इससे पूरी सभा की मनोदशा समझ गये थे। उन्होंने प्यार से भरकर इन्द्रियों के स्वामी भगवान कृष्ण की पूजा की।