राजान ऊचु:
नमस्ते देवदेवेश प्रपन्नार्तिहराव्यय ।
प्रपन्नान् पाहि न: कृष्ण निर्विण्णान्घोरसंसृते: ॥ ८ ॥
अनुवाद
राजाओं ने कहा : हे शासक देवताओं के स्वामी, हे शरण में आए भक्तों के दुःखों को नष्ट करने वाले, हम आपको प्रणाम करते हैं। चूँकि हमने आपका आश्रय लिया है, अत: हे अविनाशी कृष्ण, हमें इस भयानक भौतिक जीवन से बचाओ, जिसने हमें इतना निराश कर दिया है।