श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 73: बन्दी-गृह से छुड़ाये गये राजाओं को कृष्ण द्वारा आशीर्वाद  »  श्लोक 35
 
 
श्लोक  10.73.35 
 
 
निशम्य धर्मराजस्तत् केशवेनानुकम्पितम् ।
आनन्दाश्रुकलां मुञ्चन् प्रेम्णा नोवाच किञ्चन ॥ ३५ ॥
 
अनुवाद
 
  भगवान केशव ने उनपर जो विशेष कृपा की थी, उनका बखान सुनकर धर्मराज अति हर्ष में रो पड़े। वो इतने प्रेम में डूब गये कि कुछ भी न बोल सके।
 
 
इस प्रकार श्रीमद् भागवतम के स्कन्ध दस के अंतर्गत तिरहत्तर अध्याय समाप्त होता है ।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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