त एवं मोचिता: कृच्छ्रात् कृष्णेन सुमहात्मना ।
ययुस्तमेव ध्यायन्त: कृतानि च जगत्पते: ॥ २९ ॥
अनुवाद
इस प्रकार पुरुषों में महानतम कृष्ण के द्वारा सभी कठिनाइयों से मुक्त किए गए राजा प्रस्थान कर गये, और वे जाते समय एकमात्र उन ब्रह्माण्ड के स्वामी तथा उनके अद्भुत कृत्यों के विषय में ही सोच रहे थे।