ते पूजिता मुकुन्देन राजानो मृष्टकुण्डला: ।
विरेजुर्मोचिता: क्लेशात् प्रावृडन्ते यथा ग्रहा: ॥ २७ ॥
अनुवाद
भगवान मुकुंद द्वारा सम्मानित और कष्टों से मुक्त होकर राजा चमकते हुए कुंडल धारण किये हुए शोभायमान हुए, ठीक वैसे ही जैसे वर्षा ऋतु के बाद आकाश में चाँद और अन्य ग्रह चमकते हैं।