श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 73: बन्दी-गृह से छुड़ाये गये राजाओं को कृष्ण द्वारा आशीर्वाद  »  श्लोक 17
 
 
श्लोक  10.73.17 
 
 
श्रीशुक उवाच
संस्तूयमानो भगवान् राजभिर्मुक्तबन्धनै: ।
तानाह करुणस्तात शरण्य: श्लक्ष्णया गिरा ॥ १७ ॥
 
अनुवाद
 
  शुकदेव गोस्वामी ने कहा : इस प्रकार, बंधन से मुक्त हुए राजाओं ने भगवान की खूब प्रशंसा की। तब हे परीक्षित, उस दयालु शरणदाता ने मधुर वाणी में उनसे कहा।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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