श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 72: जरासन्ध असुर का वध  »  श्लोक 37
 
 
श्लोक  10.72.37 
 
 
ते वै गदे भुजजवेन निपात्यमाने
अन्योन्यतोंऽसकटिपादकरोरुजत्रुम् ।
चूर्णीबभूवतुरुपेत्य यथार्कशाखे
संयुध्यतोर्द्विरदयोरिव दीप्तमन्व्यो: ॥ ३७ ॥
 
अनुवाद
 
  वे एक-दूसरे पर इतनी बल और वेग से अपनी गदाएँ चलाने लगे कि जब ये उनके कंधों, कमर, पाँवों, हाथों, जाँघों तथा हँसलियों पर चोट करतीं, तो वे गदाएँ उसी तरह चूर्ण हो जातीं, जिस तरह कि एक दूसरे पर क्रुद्ध होकर आक्रमण कर रहे दो हाथियों से मदार की टहनियाँ पिस जाती हैं।
 
 
 
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