वे एक-दूसरे पर इतनी बल और वेग से अपनी गदाएँ चलाने लगे कि जब ये उनके कंधों, कमर, पाँवों, हाथों, जाँघों तथा हँसलियों पर चोट करतीं, तो वे गदाएँ उसी तरह चूर्ण हो जातीं, जिस तरह कि एक दूसरे पर क्रुद्ध होकर आक्रमण कर रहे दो हाथियों से मदार की टहनियाँ पिस जाती हैं।