इत्युदारमति: प्राह कृष्णार्जुनवृकोदरान् ।
हे विप्रा व्रियतां कामो ददाम्यात्मशिरोऽपि व: ॥ २७ ॥
अनुवाद
[शुकदेव गोस्वामी बोले] : इस तरह निर्णय लेते हुए उदार जरासंध ने कृष्ण, अर्जुन और भीम से कहा: "हे विद्वान ब्राह्मणों, तुम जो चाहो चुन सकते हो। मैं तुम्हें दूँगा, फिर चाहे अपना सिर ही क्यों न देना पड़े।"