श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 72: जरासन्ध असुर का वध  »  श्लोक 26
 
 
श्लोक  10.72.26 
 
 
जीवता ब्राह्मणार्थाय को न्वर्थ: क्षत्रबन्धुना ।
देहेन पतमानेन नेहता विपुलं यश: ॥ २६ ॥
 
अनुवाद
 
  ऐसे अयोग्य क्षत्रिय से क्या लाभ है जो जीवित तो रहता है, परन्तु अपने नश्वर शरीर से ब्राह्मणों के लाभार्थ कार्य करते हुए भी अमर यश अर्जित करने में असफल रहता है?
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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