राजा युधिष्ठिर को प्रसन्न करने की इच्छा से भगवान् कई महीनों तक इंद्रप्रस्थ में रहे। अपने प्रवास काल में उन्होंने और अर्जुन ने अग्निदेव को खाण्डव वन भेंट कर संतुष्ट किया। उन्होंने मय दानव को बचाया जिसने बाद में राजा युधिष्ठिर के लिए दिव्य सभाभवन बनाया। अर्जुन के साथ सैनिकों से घिरे भगवान् ने अपने रथ पर सवारी करने के अवसर का भी लाभ उठाया।
इस प्रकार श्रीमद् भागवतम के स्कन्ध दस के अंतर्गत इकहत्तर अध्याय समाप्त होता है ।