श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 71: भगवान् की इन्द्रप्रस्थ यात्रा  »  श्लोक 44-45
 
 
श्लोक  10.71.44-45 
 
 
तर्पयित्वा खाण्डवेन वह्निं फाल्गुनसंयुत: ।
मोचयित्वा मयं येन राज्ञे दिव्या सभा कृता ॥ ४४ ॥
उवास कतिचिन्मासान् राज्ञ: प्रियचिकीर्षया ।
विहरन् रथमारुह्य फाल्गुनेन भटैर्वृत: ॥ ४५ ॥
 
अनुवाद
 
  राजा युधिष्ठिर को प्रसन्न करने की इच्छा से भगवान् कई महीनों तक इंद्रप्रस्थ में रहे। अपने प्रवास काल में उन्होंने और अर्जुन ने अग्निदेव को खाण्डव वन भेंट कर संतुष्ट किया। उन्होंने मय दानव को बचाया जिसने बाद में राजा युधिष्ठिर के लिए दिव्य सभाभवन बनाया। अर्जुन के साथ सैनिकों से घिरे भगवान् ने अपने रथ पर सवारी करने के अवसर का भी लाभ उठाया।
 
 
इस प्रकार श्रीमद् भागवतम के स्कन्ध दस के अंतर्गत इकहत्तर अध्याय समाप्त होता है ।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.