श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 71: भगवान् की इन्द्रप्रस्थ यात्रा  »  श्लोक 41-42
 
 
श्लोक  10.71.41-42 
 
 
श्वश्र्वा सञ्चोदिता कृष्णा कृष्णपत्नीश्च सर्वश: ।
आनर्च रुक्‍मिणीं सत्यां भद्रां जाम्बवतीं तथा ॥ ४१ ॥
कालिन्दीं मित्रविन्दां च शैब्यां नाग्नजितीं सतीम् ।
अन्याश्चाभ्यागता यास्तु वास:स्रङ्‍मण्डनादिभि: ॥ ४२ ॥
 
अनुवाद
 
  अपनी सास के आग्रह से प्रेरित द्रौपदी ने भगवान् कृष्ण की पत्नियों-रुक्मिणी, सत्यभामा, भद्रा, जाम्बवती, कालिन्दी, शिबि की वंशजा मित्रविन्दा, सती नाग्नजिती और वहाँ पर उपस्थित भगवान् की अन्य रानियों को प्रणाम किया। द्रौपदी ने उन्हें वस्त्र, फूल-मालाएँ और रत्नाभूषण जैसे उपहार देकर उनका सम्मान किया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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