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अध्याय 71: भगवान् की इन्द्रप्रस्थ यात्रा
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श्लोक 38
श्लोक
10.71.38
पृथा विलोक्य भ्रात्रेयं कृष्णं त्रिभुवनेश्वरम् ।
प्रीतात्मोत्थाय पर्यङ्कात् सस्नुषा परिषस्वजे ॥ ३८ ॥
अनुवाद
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जब महारानी कुन्ती ने अपने भतीजे भगवान श्री कृष्ण को, जो सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड के स्वामी हैं, के दर्शन किये तो उनका हृदय प्रेम से भर गया। वे अपनी पुत्रवधू के साथ अपने आसन से उठीं और उन्होंने श्रीकृष्ण को गले लगा लिया।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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