श्रीमद् भागवतम » स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ » अध्याय 71: भगवान् की इन्द्रप्रस्थ यात्रा » श्लोक 3 |
|
| | श्लोक 10.71.3  | यष्टव्यं राजसूयेन दिक्चक्रजयिना विभो ।
अतो जरासुतजय उभयार्थो मतो मम ॥ ३ ॥ | | | अनुवाद | हे शक्तिशाली देवता, दिग्विजय करनेवाला ही राजसूय यज्ञ कर सकता है। मेरे मतानुसार, जरासंध पर विजय प्राप्त करने से दोनों ही उद्देश्य पूरे हो सकेंगे। | | हे शक्तिशाली देवता, दिग्विजय करनेवाला ही राजसूय यज्ञ कर सकता है। मेरे मतानुसार, जरासंध पर विजय प्राप्त करने से दोनों ही उद्देश्य पूरे हो सकेंगे। |
| ✨ ai-generated | |
|
|