सूतमागधगन्धर्वा वन्दिनश्चोपमन्त्रिण: ।
मृदङ्गशङ्खपटहवीणापणवगोमुखै: ।
ब्राह्मणाश्चारविन्दाक्षं तुष्टुवुर्ननृतुर्जगु: ॥ २९ ॥
अनुवाद
सूतों, मागधों, गंधर्वों, वन्दीजनों, विदूषकों और ब्राह्मणों में से कुछ ने स्तुति-प्रार्थना करके, कुछ ने नाच-गाकर कमल-नेत्र भगवान् का यशोगान किया। इसी बीच मृदंग, शंख, दुंदुभी, वीणा, पणव और गोमुख गूंजने लगे।