श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 71: भगवान् की इन्द्रप्रस्थ यात्रा  »  श्लोक 27
 
 
श्लोक  10.71.27 
 
 
तं मातुलेयं परिरभ्य निर्वृतो
भीम: स्मयन् प्रेमजलाकुलेन्द्रिय: ।
यमौ किरीटी च सुहृत्तमं मुदा
प्रवृद्धबाष्पा: परिरेभिरेऽच्युतम् ॥ २७ ॥
 
अनुवाद
 
  तब भीम ने नेत्रों में आँसुओं से भरे अपनें ममेरे भाई, कृष्ण को गले लगाया और फिर खुशी से हँस पड़े। अर्जुन और जुड़वाँ भाई - नकुल और सहदेव ने भी अपने सबसे प्रिय मित्र, अच्युत भगवान, को खुशी से गले लगाया और ज़ोर-ज़ोर से रोने लगे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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