श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 71: भगवान् की इन्द्रप्रस्थ यात्रा  »  श्लोक 26
 
 
श्लोक  10.71.26 
 
 
दोर्भ्यां परिष्वज्य रमामलालयं
मुकुन्दगात्रं नृपतिर्हताशुभ: ।
लेभे परां निर्वृतिमश्रुलोचनो
हृष्यत्तनुर्विस्मृतलोकविभ्रम: ॥ २६ ॥
 
अनुवाद
 
  भगवान कृष्ण का नित्य रूप लक्ष्मी जी का सनातन निवास है। जैसे ही युधिष्ठिर ने उनका आलिंगन किया, वे सारे भौतिक कलुष से मुक्त हो गए। उन्हें तुरंत दिव्य आनंद की अनुभूति हुई और वे सुख के सागर में लीन हो गए। उनकी आँखों में आँसू आ गए और भाव-विभोर होकर उनका शरीर थरथराने लगा। वे पूरी तरह से भूल गए कि वे इस भौतिक जगत में रह रहे हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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