श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 71: भगवान् की इन्द्रप्रस्थ यात्रा  »  श्लोक 17
 
 
श्लोक  10.71.17 
 
 
बलं बृहद्ध्वजपटछत्रचामरै-
र्वरायुधाभरणकिरीटवर्मभि: ।
दिवांशुभिस्तुमुलरवं बभौ रवे-
र्यथार्णव: क्षुभिततिमिङ्गिलोर्मिभि: ॥ १७ ॥
 
अनुवाद
 
  भगवान की सेना राजसी छत्रों, चमर-पंखों और विशाल ध्वज-दंडों वाली फहरती पताकाओं से युक्त थी। सूर्य की किरणें सैनिकों के उत्तम हथियारों, गहनों, किरीटों और कवचों पर चमक रही थीं। इस प्रकार, जय-जयकार और शोर करती हुई भगवान कृष्ण की सेना उस समुद्र की तरह प्रतीत हो रही थी, जिसमें उग्र लहरें और तिमिंगल मछलियाँ हलचल मचा रही हों।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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