श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 71: भगवान् की इन्द्रप्रस्थ यात्रा  »  श्लोक 14
 
 
श्लोक  10.71.14 
 
 
ततो रथद्विपभटसादिनायकै:
करालया परिवृत आत्मसेनया ।
मृदङ्गभेर्यानकशङ्खगोमुखै:
प्रघोषघोषितककुभो निरक्रमत् ॥ १४ ॥
 
अनुवाद
 
   जैसे ही मृदंग, भेरी, दुदुंभी, शंख और गोमुख की आवाजें आसमान में चारों दिशाओं में गूंजने लगीं, भगवान कृष्ण अपनी यात्रा के लिए निकल पड़े। उनके साथ रथों, हाथियों, पैदल सेना और घुड़सवारों की सेनाओं के मुख्य अधिकारी थे और हर तरफ वे अपने भयंकर निजी रक्षकों से घिरे हुए थे।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.