श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 70: भगवान् कृष्ण की दैनिक चर्या  »  श्लोक 47
 
 
श्लोक  10.70.47 
 
 
इत्युपामन्त्रितो भर्त्रा सर्वज्ञेनापि मुग्धवत् ।
निदेशं शिरसाधाय उद्धव: प्रत्यभाषत ॥ ४७ ॥
 
अनुवाद
 
  [शुकदेव गोस्वामी ने कहा] : इस प्रकार अपने स्वामी द्वारा अनुरोध किये जाने पर, जो कि सर्वज्ञ होते हुए भी मोहित होने का अभिनय कर रहे थे, उद्धव ने उनके इस आदेश को सिर-आँखों पर रखते हुए इस प्रकार उत्तर दिया।
 
 
इस प्रकार श्रीमद् भागवतम के स्कन्ध दस के अंतर्गत सत्तर अध्याय समाप्त होता है ।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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