श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 70: भगवान् कृष्ण की दैनिक चर्या  »  श्लोक 38
 
 
श्लोक  10.70.38 
 
 
तवेहितं कोऽर्हति साधु वेदितुं
स्वमाययेदं सृजतो नियच्छत: ।
यद् विद्यमानात्मतयावभासते
तस्मै नमस्ते स्वविलक्षणात्मने ॥ ३८ ॥
 
अनुवाद
 
  आपके उद्देश्य को कौन समझ सकता है? अपनी भौतिक शक्ति से आप सृष्टि का विस्तार करते हैं और उसे अपने में समाहित भी कर लेते हैं। जिससे ऐसा प्रतीत होता है कि सृष्टि का वास्तविक अस्तित्व है। आपको नमन है, जिसकी दिव्य स्थिति अचिंतनीय है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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