श्रीनारद उवाच
दृष्टा मया ते बहुशो दुरत्यया
माया विभो विश्वसृजश्च मायिन: ।
भूतेषु भूमंश्चरत: स्वशक्तिभि-
र्वह्नेरिवच्छन्नरुचो न मेऽद्भुतम् ॥ ३७ ॥
अनुवाद
श्री नारद ने कहा: हे सर्वशक्तिमान, मैंने आपकी माया की अपरिमित शक्ति देखी है, जिससे आप ब्रह्माण्ड के रचयिता ब्रह्मा को भी मोहित कर लेते हैं। हे महान प्रभु, मुझे इसमें कोई आश्चर्य नहीं होता कि आप जीवों के बीच विचरण करते हुए अपनी शक्तियों से स्वयं को छिपा लेते हैं, जैसे अग्नि अपने प्रकाश को धुएँ से ढक लेती है।