लोके भवाञ्जगदिन: कलयावतीर्ण:
सद्रक्षणाय खलनिग्रहणाय चान्य: ।
कश्चित् त्वदीयमतियाति निदेशमीश
किं वा जन: स्वकृतमृच्छति तन्न विद्म: ॥ २७ ॥
अनुवाद
आप विश्व के अधिष्ठाता प्रभु हैं और आप इस जगत में सन्तों की रक्षा करने तथा दुष्टों के दमन के लिए अपनी निजी शक्ति के साथ अवतरित हुए हैं। हे प्रभु, हम यह समझ नहीं पाते कि कोई आपके नियम का उल्लंघन करने के बाद भी अपने कर्म के फलों को कैसे भोग सकता है?