जब उस सभाभवन में सर्वशक्तिमान प्रभु अपने श्रेष्ठ सिंहासन पर बैठते तो अपने अद्वितीय तेज से आकाश की सभी दिशाओं को प्रकाशित करते हुए शोभायमान होते हैं। पुरुषों में सिंह रूप यदुओं से घिरे हुए, यदुश्रेष्ठ वैसे ही प्रतीत होते हैं जैसे कि अनेक तारों के बीच चन्द्रमा।