श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 69: नारद मुनि द्वारा द्वारका में भगवान्  »  श्लोक 45
 
 
श्लोक  10.69.45 
 
 
यानीह विश्वविलयोद्भववृत्तिहेतु:
कर्माण्यनन्यविषयाणि हरिश्चकार ।
यस्त्वङ्ग गायति श‍ृणोत्यनुमोदते वा
भक्तिर्भवेद् भगवति ह्यपवर्गमार्गे ॥ ४५ ॥
 
अनुवाद
 
  भगवान् हरि ही ब्रह्मांड की सृष्टि, पालन और विनाश के सर्वोच्च कारण हैं। हे राजन, जो कोई भी उनके द्वारा इस दुनिया में किए गए अद्वितीय कार्यों का जप करता है, सुनता है या उनकी प्रशंसा करता है, जिनका अनुकरण करना असंभव है, वह निश्चित रूप से मुक्ति देने वाले सर्वोच्च भगवान के प्रति भक्ति उत्पन्न करेगा।
 
 
इस प्रकार श्रीमद् भागवतम के स्कन्ध दस के अंतर्गत उनहत्तर अध्याय समाप्त होता है ।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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