सम्पूज्य देवऋषिवर्यमृषि: पुराणो
नारायणो नरसखो विधिनोदितेन ।
वाण्याभिभाष्य मितयामृतमिष्टया तं
प्राह प्रभो भगवते करवाम हे किम् ॥ १६ ॥
अनुवाद
वैदिक परंपरा के अनुसार देवर्षि की संपूर्ण पूजा करने के बाद, नर के मित्र आदि ऋषि नारायण, भगवान कृष्ण ने नारद से संवाद किया और भगवान के विचारों से ओत-प्रोत वाणी अमृत की तरह मधुर थी। अंत में भगवान ने नारद से पूछा, "हे प्रभु एवं स्वामी, हम आपके लिए क्या कर सकते हैं?"