कथमिन्द्रोऽपि कुरुभिर्भीष्मद्रोणार्जुनादिभि: ।
अदत्तमवरुन्धीत सिंहग्रस्तमिवोरण: ॥ २८ ॥
अनुवाद
ऐसे में इन्द्र भी उस वस्तु को हड़पने का कैसे साहस कर सकता है, जिसे उसे भीष्म, द्रोण, अर्जुन या अन्य कुरुजनों ने नहीं सौंपा हो? ऐसा तो वैसा ही होगा जैसे मेमना शेर के वध का दावा करे।