अलं यदूनां नरदेवलाञ्छनै-
र्दातु: प्रतीपै: फणिनामिवामृतम् ।
येऽस्मत्प्रसादोपचिता हि यादवा
आज्ञापयन्त्यद्य गतत्रपा बत ॥ २७ ॥
अनुवाद
अब यदुओं को इन राजसी प्रतीकों का उपयोग करने की इजाजत नहीं दी जानी चाहिए क्योंकि ये अब उन्हें देने वालों के लिए परेशानी बन रहे हैं, ठीक वैसे ही जैसे जहरीले सांपों को दूध पिलाया जाता है। हमारी इनायत से संपन्न ये यादव अब सारी शर्म-हया खो चुके हैं और हमें आदेश देने का दुस्साहस कर रहे हैं!