श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 68: साम्ब का विवाह  »  श्लोक 24
 
 
श्लोक  10.68.24 
 
 
अहो महच्चित्रमिदं कालगत्या दुरत्यया ।
आरुरुक्षत्युपानद् वै शिरो मुकुटसेवितम् ॥ २४ ॥
 
अनुवाद
 
  अरे यह कितनी अजीब बात है ! काल रूपी चलती हाथी के जैसी है जो टाले नहीं टलती—अब पैरों की एक जूती भी उस सिर पर चढ़ना चाहती है, जिस पर राज-तिलक का चिह्न सुशोभित है !
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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