श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 67: बलराम द्वारा द्विविद वानर का वध  »  श्लोक 9-10
 
 
श्लोक  10.67.9-10 
 
 
तत्रापश्यद् यदुपतिं रामं पुष्करमालिनम् ।
सुदर्शनीयसर्वाङ्गं ललनायूथमध्यगम् ॥ ९ ॥
गायन्तं वारुणीं पीत्वा मदविह्वललोचनम् ।
विभ्राजमानं वपुषा प्रभिन्नमिव वारणम् ॥ १० ॥
 
अनुवाद
 
  वहाँ उन्होंने यदुओं के स्वामी श्री बलराम को देखा, जो कमल-पुष्पों की माला से सुशोभित थे और जिनका हर अंग अत्यंत आकर्षक लग रहा था। वे युवतियों के मध्य गा रहे थे और चूँकि उन्होंने वारुणी मदिरा पी रखी थी इसलिए उनकी आँखें इस तरह घूम रही थीं मानो वे नशे में हों। उनका शरीर चमचमा रहा था और वे कामोन्मत्त हाथी की तरह व्यवहार कर रहे थे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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