|
|
|
श्लोक 10.66.43  |
|
 |
|
य एनं श्रावयेन्मर्त्य उत्तम:श्लोकविक्रमम् ।
समाहितो वा शृणुयात् सर्वपापै: प्रमुच्यते ॥ ४३ ॥ |
|
अनुवाद |
|
जो कोई भी मर्त्य प्राणी भगवान् उत्तमश्लोक की इस वीरतापूर्ण लीला का वर्णन करता है या केवल उसे ध्यान से सुनता है, वह सभी पापों से मुक्त हो जाएगा। |
|
|
इस प्रकार श्रीमद् भागवतम के स्कन्ध दस के अंतर्गत छियासठ अध्याय समाप्त होता है । |
|
|
|
|