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अध्याय 66: पौण्ड्रक—छद्म वासुदेव
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श्लोक 39
श्लोक
10.66.39
तत् सूर्यकोटिप्रतिमं सुदर्शनं
जाज्वल्यमानं प्रलयानलप्रभम् ।
स्वतेजसा खं ककुभोऽथ रोदसी
चक्रं मुकुन्दास्त्रमथाग्निमार्दयत् ॥ ३९ ॥
अनुवाद
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करोड़ों सूर्यों की तरह प्रज्ज्वलित हुआ प्रभु मुकुंद का वह सुदर्शन चक्र। उसका तेज ब्रह्मांड के अंत की अग्नि की तरह चमक रहा था और अपनी गर्मी से वह आकाश, सारी दिशाओं, स्वर्ग और पृथ्वी के साथ-साथ उस अग्नि जैसे राक्षस को भी पीड़ा देने लगा।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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