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अध्याय 66: पौण्ड्रक—छद्म वासुदेव
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श्लोक 35
श्लोक
10.66.35
तमाभिचारदहनमायान्तं द्वारकौकस: ।
विलोक्य तत्रसु: सर्वे वनदाहे मृगा यथा ॥ ३५ ॥
अनुवाद
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अभिचार अनुष्ठान से उत्पन्न अग्नि तुल्य दैत्य को निकट आते देख द्वारका के सभी निवासी भयभीत हो उठे, जैसे जंगल में आग लगने पर पशु भयभीत हो उठते हैं।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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