श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 66: पौण्ड्रक—छद्म वासुदेव  »  श्लोक 25
 
 
श्लोक  10.66.25 
 
 
शिर: पतितमालोक्य राजद्वारे सकुण्डलम् ।
किमिदं कस्य वा वक्त्रमिति संशिशिरे जना: ॥ २५ ॥
 
अनुवाद
 
  राजमहल के द्वार पर पड़े कुण्डल से सजे हुए सिर को देखकर वहाँ उपस्थित सभी लोग हैरान थे। कुछ ने पूछा, "यह क्या है?" और कुछ ने कहा, "यह सिर है, लेकिन यह किसका है?"
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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