शिर: पतितमालोक्य राजद्वारे सकुण्डलम् ।
किमिदं कस्य वा वक्त्रमिति संशिशिरे जना: ॥ २५ ॥
अनुवाद
राजमहल के द्वार पर पड़े कुण्डल से सजे हुए सिर को देखकर वहाँ उपस्थित सभी लोग हैरान थे। कुछ ने पूछा, "यह क्या है?" और कुछ ने कहा, "यह सिर है, लेकिन यह किसका है?"