श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 66: पौण्ड्रक—छद्म वासुदेव  »  श्लोक 22
 
 
श्लोक  10.66.22 
 
 
तथा काशिपते: कायाच्छिर उत्कृत्य पत्रिभि: ।
न्यपातयत् काशिपुर्यां पद्मकोशमिवानिल: ॥ २२ ॥
 
अनुवाद
 
  भगवान् कृष्ण ने अपने बाणों से काशिराज के सिर को उसके शरीर से उड़ा दिया और वह सिर वायु के झोंके से उड़ते कमल की तरह काशी नगरी में जा गिरा।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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