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स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ
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अध्याय 66: पौण्ड्रक—छद्म वासुदेव
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श्लोक 21
श्लोक
10.66.21
इति क्षिप्त्वा शितैर्बाणैर्विरथीकृत्य पौण्ड्रकम् ।
शिरोऽवृश्चद् रथाङ्गेन वज्रेणेन्द्रो यथा गिरे: ॥ २१ ॥
अनुवाद
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इस प्रकार पौण्ड्रक को चिढ़ाकर भगवान् कृष्ण ने अपने तीखे बाणों से उसका रथ नष्ट कर दिया। फिर भगवान् ने अपने सुदर्शन चक्र से उसका सिर उसी तरह काट दिया जैसे इन्द्रदेव अपने वज्र से पर्वत की चोटी काट देते हैं।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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