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स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ
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अध्याय 66: पौण्ड्रक—छद्म वासुदेव
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श्लोक 18
श्लोक
10.66.18
आयोधनं तद्रथवाजिकुञ्जर-
द्विपत्खरोष्ट्रैररिणावखण्डितै: ।
बभौ चितं मोदवहं मनस्विना-
माक्रीडनं भूतपतेरिवोल्बणम् ॥ १८ ॥
अनुवाद
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भगवान के चक्र द्वारा काटे गए रथों, घोड़ों, हाथियों, आदमियों, खच्चरों और ऊँटों से भरा हुआ युद्धक्षेत्र भूतपति के भयानक अखाड़े की तरह चमक रहा था, जिससे बुद्धिजीवियों को संतुष्टि मिल रही थी।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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