श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 66: पौण्ड्रक—छद्म वासुदेव  »  श्लोक 15
 
 
श्लोक  10.66.15 
 
 
द‍ृष्ट्वा तमात्मनस्तुल्यं वेषं कृत्रिममास्थितम् ।
यथा नटं रङ्गगतं विजहास भृशं हरि: ॥ १५ ॥
 
अनुवाद
 
  जब राजा ने ठीक भगवान् हरि की तरह ही अपना वेश बना लिया था, बिल्कुल वैसा ही जैसा कोई मंच पर अभिनेता करता है, तो यह देखकर भगवान् हरि बहुत हँसे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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