श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 65: बलराम का वृन्दावन जाना  »  श्लोक 8
 
 
श्लोक  10.65.8 
 
 
दिष्‍ट्या कंसो हत: पापो दिष्‍ट्या मुक्ता: सुहृज्जना: ।
निहत्य निर्जित्य रिपून् दिष्‍ट्या दुर्गं समाश्रिता: ॥ ८ ॥
 
अनुवाद
 
  हमारे लिए यह परम सौभाग्य का विषय है कि पापी कंश मारा जा चुका है और हमारे प्यारे संबंधी आजाद हो गए हैं। साथ ही यह भी हमारे लिए गौरव की बात है कि हमारे संबंधियों ने अपने शत्रुओं का नाश किया है और उन्हें पराजित कर एक मजबूत दुर्ग में पूर्ण सुरक्षा प्राप्त कर ली है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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