श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 65: बलराम का वृन्दावन जाना  »  श्लोक 33
 
 
श्लोक  10.65.33 
 
 
अद्यापि द‍ृश्यते राजन् यमुनाकृष्टवर्त्मना ।
बलस्यानन्तवीर्यस्य वीर्यं सूचयतीव हि ॥ ३३ ॥
 
अनुवाद
 
  हे राजन्, आज भी देखा जा सकता है कि यमुना अनेक धाराओं में बंटकर बह रही है, जो असीम बलशाली बलराम द्वारा खींचे जाने पर बनी थीं। इस प्रकार यमुना उनके पराक्रम को प्रदर्शित कर रही है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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