श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 65: बलराम का वृन्दावन जाना  »  श्लोक 32
 
 
श्लोक  10.65.32 
 
 
वसित्वा वाससी नीले मालामामुच्य काञ्चनीम् ।
रेये स्वलङ्कृतो लिप्तो माहेन्द्र इव वारण: ॥ ३२ ॥
 
अनुवाद
 
  भगवान बलराम ने नीले वस्त्र और गले में सोने का हार पहना। सुगंधित तेल लगाकर और नाना प्रकार के आभूषणों से सजकर वो इंद्र के शाही हाथी जितने ही सुंदर दिखने लगे।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.