एवं निर्भर्त्सिता भीता यमुना यदुनन्दनम् ।
उवाच चकिता वाचं पतिता पादयोर्नृप ॥ २७ ॥
अनुवाद
[शुकदेव गोस्वामी आगे कहते हैं कि] : हे राजन! बलराम द्वारा इस प्रकार फटकारे जाने पर डरी हुई यमुना नदी की देवी आईं और यदुवंशियों के आनंद श्री बलराम के चरणों में गिर पड़ीं। कांपते हुए उन्होंने उनसे निम्नलिखित शब्द कहे।