श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 65: बलराम का वृन्दावन जाना  »  श्लोक 24-25
 
 
श्लोक  10.65.24-25 
 
 
स्रग्व्येककुण्डलो मत्तो वैजयन्त्या च मालया ।
बिभ्रत् स्मितमुखाम्भोजं स्वेदप्रालेयभूषितम् ।
स आजुहाव यमुनां जलक्रीडार्थमीश्वर: ॥ २४ ॥
निजं वाक्यमनाद‍ृत्य मत्त इत्यापगां बल: ।
अनागतां हलाग्रेण कुपितो विचकर्ष ह ॥ २५ ॥
 
अनुवाद
 
  उन्मत्त अवस्था में श्री बलराम सुप्रसिद्ध वैजयन्ती सहित पुष्प-माला पहनकर और कान में एक कुंडल पहने हुए अपने मुस्कुराते हुए कमल-मुख पर दिख रहे पसीने की बूँदों से मानो बर्फ के कण झड़ रहे थे। तब उन्होंने यमुना को बुलाया ताकि वे उसके जल में क्रीड़ा कर सकें, किंतु यमुना ने उनके आदेशों की अवहेलना की क्योंकि वे मदमस्त थे। यह देखकर बलरामजी क्रोधित हो गए और उन्होंने अपने हल की नोक से नदी को खींचना शुरू कर दिया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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