श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 65: बलराम का वृन्दावन जाना  »  श्लोक 23
 
 
श्लोक  10.65.23 
 
 
उपगीयमानचरितो वनिताभिर्हलायुध: ।
वनेषु व्यचरत् क्षीवो मदविह्वललोचन: ॥ २३ ॥
 
अनुवाद
 
  जब उनके कार्यों का गान चल रहा था, तब हलायुध मानो मदहोश होकर अपनी स्त्रियों के संग विविध जंगलों में घूम रहे थे। उनकी आँखें मदिरा के प्रभाव के अधीन घूम रहीं थीं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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