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श्रीमद् भागवतम
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स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ
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अध्याय 65: बलराम का वृन्दावन जाना
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श्लोक 15
श्लोक
10.65.15
इति प्रहसितं शौरेर्जल्पितं चारु वीक्षितम् ।
गतिं प्रेमपरिष्वङ्गं स्मरन्त्यो रुरुदु: स्त्रिय: ॥ १५ ॥
अनुवाद
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ये शब्द बोलते हुए, तरुण गोपियों को भगवान् शौरि की हँसी, उनके साथ उनकी मोहक बातें, उनकी आकर्षक चितवनें, उनके चलने का ढंग और उनके प्रेमपूर्ण आलिंगनों की याद आ गई। इस तरह वे सिसकने लगीं।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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