स उत्तम:श्लोककराभिमृष्टो
विहाय सद्य: कृकलासरूपम् ।
सन्तप्तचामीकरचारुवर्ण:
स्वर्ग्यद्भुतालङ्करणाम्बरस्रक् ॥ ६ ॥
अनुवाद
यशस्वी भगवान के हाथों के स्पर्श से, उस प्राणी ने तुरंत छिपकली के अपने रूप को त्याग दिया और स्वर्ग के वासी का रूप धारण कर लिया। उसका रंग पिघले सोने जैसा सुंदर था और वह अद्भुत गहनों, वस्त्रों और मालाओं से सजाया गया था।