श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 64: राजा नृग का उद्धार  »  श्लोक 43
 
 
श्लोक  10.64.43 
 
 
ब्राह्मणार्थो ह्यपहृतो हर्तारं पातयत्यध: ।
अजानन्तमपि ह्येनं नृगं ब्राह्मणगौरिव ॥ ४३ ॥
 
अनुवाद
 
  अगर किसी ब्राह्मण की संपत्ति को अनजाने में भी चुराया जाता है तो चोरी करने वाले व्यक्ति को अवश्य ही पतन होना पड़ता है, जैसे गाय के चोरी हो जाने से नृग को पतन होना पड़ा था।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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