श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 64: राजा नृग का उद्धार  »  श्लोक 23
 
 
श्लोक  10.64.23 
 
 
पूर्वं त्वमशुभं भुङ्‍क्ष उताहो नृपते शुभम् ।
नान्तं दानस्य धर्मस्य पश्ये लोकस्य भास्वत: ॥ २३ ॥
 
अनुवाद
 
  यमराज बोले: हे राजन! आप पहले अपने पापों के फल भोगना चाहते हैं या अपने पुण्यों के? यकीनन मुझे न तो आपके द्वारा किए गए कर्तव्यपूर्ण दान का अंत दिखाई देता है और न ही उसके परिणामस्वरूप स्वर्गलोक में आपके सुख-भोगों का।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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