श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 64: राजा नृग का उद्धार  »  श्लोक 19-20
 
 
श्लोक  10.64.19-20 
 
 
अनुनीतावुभौ विप्रौ धर्मकृच्छ्रगतेन वै ।
गवां लक्षं प्रकृष्टानां दास्याम्येषा प्रदीयताम् ॥ १९ ॥
भवन्तावनुगृह्णीतां किङ्करस्याविजानत: ।
समुद्धरतं मां कृच्छ्रात् पतन्तं निरयेऽशुचौ ॥ २० ॥
 
अनुवाद
 
  इस स्थिति में अपने आप को कर्तव्य के भयंकर संकट में पाकर मैंने दोनों ब्राह्मणों से विनती की, "मैं इस गाय के बदले एक लाख उत्तम गायें दूँगा। कृपया उस गाय को वापस कर दें। आप अपने सेवक मुझ पर दया करें। मैं नहीं जानता था कि मैं क्या कर रहा था। मुझे इस कठिन स्थिति से बचा लें, नहीं तो निश्चित रूप से मैं नर्क में गिरूंगा।"
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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