श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 64: राजा नृग का उद्धार  »  श्लोक 11
 
 
श्लोक  10.64.11 
 
 
किं नु तेऽविदितं नाथ सर्वभूतात्मसाक्षिण: ।
कालेनाव्याहतद‍ृशो वक्ष्येऽथापि तवाज्ञया ॥ ११ ॥
 
अनुवाद
 
  हे स्वामी, ऐसा कौन-सा ज्ञान हो सकता है जो आपसे छिपा हो? आपकी दृष्टि समय के बंधन से मुक्त है और आप हर प्राणी के मन के साक्षी हैं। फिर भी, आपके आदेश पर मैं बोलूंगा।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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